दो चक्र

चाह थी कुछ कर जाऊँ, धूल से ज़र्रा बन जाऊँ, आशीष मिला अपनों का,दूर कहीं रश्मि उज्ज्वलता, क्षण क्षण में जीवन जी जाऊँ, आत्म…

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